एक पिता और पुत्र वर्जित इच्छाओं में लिप्त होते हैं, एक उग्र मुठभेड़ की शुरुआत करते हैं। बेटे की मासूमियत जल्द ही छीन ली जाती है, जिससे कच्चा जुनून पैदा होता है। उनकी मौलिक प्रवृत्ति नियंत्रण में आ जाती है, और अपराधबोध की कोई गुंजाइश नहीं बची रहती है। यह निषिद्ध आनंद का एक कच्चा, अनफ़िल्टर्ड प्रदर्शन है।